सर्वप्रथम माँ शारदे को नमन,
तत्पश्चात "लेखनी" मंच को नमन,
मंच के सभी श्रेष्ठ सुधि जनों को नमन,
विषय:- 🌹 ज़िन्दगी 🌹
दिनांक -- २५.०६.२०२३
दिन -- रविवार
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बेरंग हो चुकी है ज़िन्दगी, कुछ रंग भरना तो है,
कुछ भी हो, ज़िन्दगी का सामना करना तो है।
चार कदम भी नहीं चलता, और थक जाता हूँ,
टूट चुकी है हिम्मत, फ़िर भी साहस जुटाता हूँ।
जीवन की नैया को, भवसागर पार करना तो है,
कुछ भी हो, ज़िन्दगी का सामना करना तो है।
मैदान-ए-जंग में, प्यादा भी राजधर्म निभाता है,
विजयश्री मिलता उन्हें, या वीरगति को पाता है।
अपने हौसलों को कर बुलंद, उसे लड़ना तो है,
कुछ भी हो, ज़िन्दगी का सामना करना तो है।
लड़खड़ाती ज़िन्दगी से, मिली मुझे यह सीख है,
कोई पूछे तो हँसकर, कह देता हूँ सब ठीक है।
आडंबरों की दुनिया में मुस्कुराकर संवरना तो है,
कुछ भी हो, ज़िन्दगी का सामना करना तो है।
चार दिनों की ज़िन्दगी है, दो दिन तो कट गये,
दरोदीवार ये घर संसार, कई हिस्सों में बँट गये।
साँसों का हिसाब चुकता कर लूँ, मरना तो है,
कुछ भी हो, ज़िन्दगी का सामना करना तो है।
बेरंग हो चुकी है ज़िन्दगी, कुछ रंग भरना तो है,
कुछ भी हो, ज़िन्दगी का सामना करना तो है।
🙏🌷 मधुकर 🌷🙏
(अनिल प्रसाद सिन्हा 'मधुकर', जमशेदपुर, झारखण्ड)
(स्वरचित मौलिक रचना, सर्वाधिकार ©® सुरक्षित)
Shashank मणि Yadava 'सनम'
26-Jun-2023 07:47 AM
बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति
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Gunjan Kamal
26-Jun-2023 01:01 AM
👌👏
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Varsha_Upadhyay
25-Jun-2023 11:07 PM
बहुत खूब
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